हौज़ा / फ़िरदौसी यूनिवर्सिटी में इस्लामी इतिहास की अध्यापिका ने कहा कि ईरानी महिलाओं ने इस्लामी क्रांति से लेकर प्रतिरोध मोर्चे तक नई इस्लामी सभ्यता के निर्माण में बेजोड़ भूमिका निभाई है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मशहद की फ़रदौसी यूनिवर्सिटी में इस्लामिक इतिहास की अध्यापिका सुश्री रूया बख़शीज़ादा ने “नई इस्लामी सभ्यता के निर्माण में ईरानी महिलाओं की ऐतिहासिक भूमिका” के विषय पर विशेष वार्ता में ईरानी महिलाओं की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक सेवाओं की समीक्षा पेश की।
उन्होंने कहा कि आज के दौर में ईमानदार महिलाओं की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी जिहाद-ए-तबइन यानी “सत्य और तर्क को स्पष्ट रूप से समाज तक पहुँचाना” है। एक ईरानी महिला अपनी इस्लामी पहचान और इंसानियत पर आधारित मूल्यों के ज़रिए पूरी दुनिया को ये संदेश दे सकती है कि मज़लूमों की मदद करना एक पूरी तरह मानवीय और ईश्वरीय सिद्धांत है।
सुश्री बख़शीज़ादा ने कहा कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) और हज़रत ज़ैनब (स) का जीवन-चरित्र हर इस्लामी महिला के लिए सदा से मार्गदर्शन और उदाहरण रहा है। मुस्लिम महिला ईमान, समझ और जिहाद-ए-तबइन की ध्वजवाहक है चाहे बात घर की परवरिश की हो या समाज और राष्ट्र के क्षेत्र की।
इस्लामी इतिहास की इस शिक्षिका ने बताया कि महिलाओं ने प्रतिरोध आंदोलन के ज़ाहिर होने से पहले ही इस्लामी क्रांति में अहम भूमिका निभाई थी। महिलाओं ने जागृति और साहस के साथ पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर पहलेवी शासन के गिरने और अमेरिकी निर्भरता से मुक्ति के संघर्ष में सक्रिय भाग लिया।
उन्होंने कहा कि इस्लामी क्रांति के संघर्ष करने वाले योद्धा, ईमानदार, पवित्र और बहादुर माताओं की गोदों में पले-बढ़े थे। इन्हीं महिलाओं ने क्रांतिकारी पीढ़ी की नींव रखी।
सुश्री रोया बख़शीज़ादा ने आगे कहा कि इराक़ दिफ़ा-ए-मुक़द्दस की महान कहानी का बड़ा हिस्सा भी महिलाओं की क़ुर्बानी और त्याग से जुड़ा है। महिलाओं ने न सिर्फ़ अपने पतियों, बेटों और भाइयों को मोर्चे पर भेजा, बल्कि कपड़े सिलने, खाना तैयार करने और आर्थिक सहयोग जैसे कामों से भी रक्षा युद्ध को मज़बूती और सहारा दिया।
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